गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

कवितायेँ


                                                                मेरी ममतामयी माँ
 अमृत से सींच कर जिसने वृक्ष बनाया
 अपने स्नेह का मुझको अक्ष बनाया
 गैरों में भी प्यार बाँटना जिसने मुझको सिखलाया
 मेरा हर जन्म जिसका ऋणी रहा
        वो मेरी ममतामयी माँ
 संसार का परिचय सर्वप्रथम जिसने कराया
 बड़ों का सम्मान करना जिसने मुझको सिखलाया
 अपनी मर्यादा और संस्कृति की श्रेष्ठता को बतलाया
 मेरा हर कर्म जिसका आभारी रहा
       वो मेरी ममतामयी माँ
   

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें