शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

मेरा जहाँ: राजनीति

मेरा जहाँ: राजनीति: मैंने भारत- भूटान संबंधो पर शोध किया है जिसे करने में मुझे काफी  कठिनाई उठानी पड़ी क्योकि इस विषय पर हिंदी में उपलब्ध साहित्य बहुत कम है.मै...

सोमवार, 22 जून 2015

माँ का खत … बेटे  के नाम 

प्यारे बेटे ,
कैसे हो ,बहुत दिन हुए तुमसे ठीक से बात ही नहीं हुई। बहुत व्यस्त रहते हो तुम आजकल, तुम्हे समय ही नहीं मिल पाता । कल भी तुमसे फोन पर बात करनी चाही पर तुम्हे बहु और बेटे को मॉल घुमाने लेके जाना था तो बात अधूरी ही रह गई। सोचो तो कल की ही बात लगती है। हम किस तरह से घंटों बाते किआ करते थे,समय का पता ही नहीं चलता था यु ही निकल जाता था और अब तो समय ही समय है निकलता ही नही। दो साल हो गए तुम्हे देखे हुए आये ही नहीं तुम। पर तुम भी तो मजबूर हो.…… तुम्हारी पत्नी को तेज गर्मी और सर्दी दोनों ही सहन नहीं होती और यहाँ का पहनावा और रहन सहन भी तो नहीं भाता उसे।  कोई बात नहीं बेटा हमें तो यही जीना है पर तुम उसका ख्याल रखो उसका मन नहीं दुखना चाहिए। 
      अभी कल ही प्रसाद चढाने के लिए लड्डू बनाये थे तो न जाने क्यों आखे नम हो गईं ,लगा तुम कह रहे हो बस इतने से ही माँ, इनसे मेरा क्या होगा। तुम्हे याद है , मेरे हाथ से नई नई चीजे बनवाकर खाना तुम्हे कितना भाता था। कहा करते थे की कॉलेज में भी तुम्हारे खाने की बहुत याद आती है।  अब तो तुम्हे चाव  से मेरे हाथ का खाना खाए  बरसो हो गए और अब तो शायद तुम मेरे हाथ के बनाये खाने का स्वाद भी भूल चुके होंगे। आजकल लो कैलोरी वाला खाना जो भाता है तुम्हे। और मैं भी किसके लिए बनाऊ ,पापा तुम्हारे हार्ट पेशेन्ट हैं और तुम्हारे बिना मैं तो बस जीने के लिए ही खाती हूँ। 
      वैसे तो तुम्हारे  पापा तुम्हे रोज ही याद करते हैं पर कल ही वो मुझसे कह रहे थे की देखो शर्माजी का पोता कितना बड़ा हो गया है ,राजेश भी इतना ही बड़ा था जब हम  मिलकर क्रिकेट खेला करते थे और जब मैं थक जाता था तो मेरे मना  करने के बाद भी वो कैसे मेरे पैर दबाता  था। पापा के पैर दबाना तुम्हारा नियम बन चुका था जिसके बिना न तुम्हे नींद आती थी ना पापा को,जो तुमने नौकरी के बाद भी नहीं तोडा लेकिन पता नही क्यों शादी के बाद तोड़ दिआ शायद अपनी पत्नी के सामने माँ बाप की सेवा करते हुए तुम्हे शर्म आने लगी थी। कोई बात नहीं बेटा वैसे भी अब तुम्हारे पापा के पैरो में दर्द नहीं होता या वो मुझे बताते नहीं हैं ....... . क्युकी तुम जो नहीं हो अब पैर दबाने के लिए। 
      कोई बात नहीं बेटा हमारा क्या है थोड़ा बहुत जीवन बचा है काट लेंगे लेकिन तुम्हारे तो जीने के दिन है ,अपनी पत्नी और बच्चे के साथ एन्जॉय करने के दिन हैं। आजादी से अपनी जिंदगी जियो हम तुम्हे परेशान नहीं करेंगे बस कभी कभी फोन कर लिए करो ,बड़ी याद आती है तुम्हारी। 
अपना ख्याल रखना ,हमेशा खुश रहो। 
                                                                                                                          तुम्हारी माँ 

मंगलवार, 27 जनवरी 2015

                                  बदलाव

 सुचित्रा आज फिर ओफ़िस से घर के लिये निकलते-निकलते लेट हो गई सारे रस्ते उसके दिमाग मे आकाश का चेहरा घूमता रहा ओर कानो मे उसकी जली कती बाते..कहा थी.किसके साथ थी,ये कोइ घर आने का टाइम है। सुचित्रा का आकाश के साथ रहना मुश्किल होता जा रहा था,लेकिन उनकी ५ साल की बॆटी उन्हे एक साथ बान्धे हुए थी उसका चेहरा देखते ही वो अपना सारा अपमान भूल जाती थी. घर पहुचने पर आकाश ने ही दरवाजा खोला सुचित्रा अन्दर आकर कुर्सी पर बैठ गइ। नेहा मम्मी मम्मी चिल्लते हुए उसके गले से लटक गइ तो पास ही खडे आकाश ने बोला,बॆटा मम्मी थक कर आई है उन्हे थोडा आराम करने दो.सुचित्रा आकाश आश्चर्य से देखती रह गइ। ना आज उसकि जली कटी सुनने को मिलि ना ही ताने......आज तो खाना भी आकाश ने ही परोसा। आकाश मे ये बदलाव रोज ही नजर आने लगा.सुचित्रा आकाश मे आये इस बद्लाव को देखकर खुश होना चहती थी लेकिन उसके मन की दुविधा उसे सोचने पर मजबूर कर रही थी।रविवार का दिन था,नेहा खेलने गइ थी आकाश ओर सुचित्रा बैठ कर टीवी देख रहे थे। आकाश ने बडे प्यार से उसका हाथ थामते हुए पूछा ,सुचित्रा मै तुमसे कुछ मागू तो तुम मना तो नही करोगी। सुचित्रा का मन सचेत हो गया। उसने कहा ......क्या बात हॆ बोलो। आकाश ने कहा ....तुम्हे तो पता हि है,मुझे नोकरी करने मे बिल्कुल भी दिलचस्पी नही है। मै ओर दिलिप एक नया बिजनस शुरु करने कि सोच रहे है। ६ लाख रुपये चहिये,तुम अपनि कम्पनी से लोन ले लो।सुचित्रा को आकाश मे आये बदलाव का कारन समझ आ गया था.

                                                             महिला अत्याचार   

कॉलेज में भाषण प्रतियोगिता थी शीर्षक थामहिला अत्याचार’. सभी प्रतिभागी पूरी तयारी के साथ सभा स्थल पर बैठे थे. प्रतियोगिता प्रारम्भ हुई और सभी प्रतिभागियों ने क्रमानुसार अपने अपने विचार व्यक्त करने आरम्भ किये. ज्यादातर प्रतिभागियों ने महिला अत्याचार का मुख्य दोषी पुरुषों को बताया और महिला श्रोताओं की जमकर तालियां बटोरी. अब बारी विभा की थी ,कॉलेज की एक होनहार छात्रा.सभी बड़े गोर से उसका भाषण सुन रहे थे. सभी को विभा से कुछ हट के ,कुछ अलग सुनने की आशा थी और वही हुआ. विभा ने महिलाओं की दुर्दशा के लिए पुरुषो को जिम्मेदार नहीं ठहराया, बल्कि उसकी नज़र में स्त्रिया स्वयं अपनी इस दुर्दशा की जिम्मेदार हैं.पूरी सभा शांत केवल विभा की आवाज गूँज रही थी.
  विभा ने बोलना जारी रखा………….यह एक सामान्य सी बात है कि महिलाओं के साथ कुछ भी गलत होता है, निशाना सीधे पुरुषों पर साधा जाता है.लेकिन इसकी शुरुआत एक औरत ही करती है. घर में माँ बेटी के साथ,सास बहु के साथ,दादी पोती के साथ सदियों से दुर्वयवहार करती आ रही है.अगर एक दादी अपने पोते और पोती में अंतर न करे, तो क्या एक भाई अपनी बहन से प्रेम करना नहीं सिखेगा अगर एक सास अपनी बहु को प्यार और सम्मान से रखे तो क्या उसके बेटै की हिम्मत है कि वो उस पे हाथ उठा सके.जहाँ तक मेरा मानना है एक लड़की को बेटी के रूप में पिता,बहन के रूप में भाई और बहु के रूप में ससुर ज्यादा प्यार और सम्मान देते हैं. ये बात सही है के औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती है अगर हम इस दुश्मनी को ही जड़ से ख़त्म कर दे तो…….  ही कोई दादी अपनी पोती को गर्भ में ही मारना चाहेगी, ही कोई सास अपनी बहु को जलना चाहेगी, ननद भाभी सहेली बनकर रहेंगी और यह बदलाव घर में रहने वाले पुरुषों के औरतों के प्रति नजरिये में भी बदलाव लाएगा. जब घर के माहोल में बदलाव होगा तो धीरे-धीरे समाज बदलेगा और फिर अपना देश भी. तो बदलने की सबसे पहले जरूरत स्त्री को ही है .यदि स्त्रिओ की सोच बदलेगी तो पुरुष तो स्वयं ही बदल जायेंगे, क्योकि उनकी परवरिश तो एक स्त्री ही करती है. यदि एक माँ अपने बेटे को सही सीख देगी उसे स्त्रियो का सम्मान करना सिखाएगी तो महिला अत्याचार स्वतः ही कम होते जायेंगेअब तालियां बजाने की बारी पुरुषों की थी और विभा के भाषण का मर्म समझने कि बारी स्त्रियो की.
 

 

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

कवितायेँ


                                                                मेरी ममतामयी माँ
 अमृत से सींच कर जिसने वृक्ष बनाया
 अपने स्नेह का मुझको अक्ष बनाया
 गैरों में भी प्यार बाँटना जिसने मुझको सिखलाया
 मेरा हर जन्म जिसका ऋणी रहा
        वो मेरी ममतामयी माँ
 संसार का परिचय सर्वप्रथम जिसने कराया
 बड़ों का सम्मान करना जिसने मुझको सिखलाया
 अपनी मर्यादा और संस्कृति की श्रेष्ठता को बतलाया
 मेरा हर कर्म जिसका आभारी रहा
       वो मेरी ममतामयी माँ
   

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

राजनीति

मैंने भारत- भूटान संबंधो पर शोध किया है जिसे करने में मुझे काफी  कठिनाई उठानी पड़ी क्योकि इस विषय पर हिंदी में उपलब्ध साहित्य बहुत कम है.मैंने तो अपनी शोध पूरी कर ली लेकिन मैं चाहती हूँ की जो और लोग इस विषय पर अपना शोध कर रहे हैं उनकी मैं कुछ मदद कर सकू.इसलिए मैं इस ब्लॉग पर इस विषय से सम्बंधित जानकारी डालती रहूंगी.और यदि किसी को इस विषय में मेरी मदद की जरुरत हो तो मुझे जरूर लिखें .



                                                               भूटान -भारत सम्बन्ध

भूटान दक्षिण एशिया में एक अकेला ऐसा देश है जो परिवर्तन के इस युग में भी अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता ,अपने धार्मिक रीती -रिवाज व सांस्कृतिक परंपराओं  को अक्षुण बनाये रखे हुए है। भारत ने भी कभी भूटान की संस्कृति के ऊपर आघात करने की कोशिश नहीं की। भूटान ने भी भारत के अलावा किसी अन्य देश के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित नहीं किये क्युकी वह किसी भी रूप में अपनी संस्कृति पर कोई आघात नहीं चाहता था। भारत की सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए भूटान को भारत से कोई खतरा महसूस नहीं हुआ।
         भूटान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का अध्धयन यह बताता है की यह पर्वतीय देश अपनी पुरानी संस्कृति ,पुरानी परम्पराओं तथा रीती -रिवाजों की सुरक्षा के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहा है। भूटान ने अपनी अखंडता ,सार्वभौमिकता ,एकता एवं अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता को बनाये रखने हेतु अपने आपको समस्त विश्व से अलग कर लिया।भुता की भौगोलिक परिस्थितियों ने भी भूतानि लोगो की इस भावना को मूर्त रूप प्रदान करने में मदद की।  यही कारन है की प्रारम्भ में भूटान अन्य राष्ट्रों एवं भारत के साथ सामाजिक सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों को स्थापित करने में झिझकता रहा। लेकिन आधुनिकीकरण एवं वैश्वीकरण के इस युग की आवशयकताओं ने भूटान की भौगोलिक दशाओं को नजरअंदाज कर भूटान को अन्य रश्त्रों के साथ वैदेशिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए मजबूर कर दिआ।